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Friday, October 17, 2008

kaise kareenge kazi ko razi

On 15th October 2008, I happened to read an Article about Maharashtra government legalising the live-in relationships. You may read the preserved copy of this article by clicking here

I have following poem as a comment
मिंया बीवी राज़ी
तो क्या करेगा काज़ी


यदि ना होगा घरों मे झगडा और तंटा
तडपेंगे काज़ी बेचारे बैठ घंटा पे घंटा

अरे! कुछ तो ऐसा करो के हो काज़ी का भला
नहि तो निकालेंगे सब् काले कोटवालें उसका ही दिवाला

सुनो! एक तरकीब है जीससे सुलझेगी काज़ी की उल्झन
यदि मर्द औरत कि हो अच्छी दोस्त् तो घोषित करो के वें है दुल्हा - दुल्हन

कुछ ऐसे कानुन भी लिखो के दुल्हन हो बडी परेसान
दिखा दो उस औरत को पैसे पाने का सपना आसान

ज़लदी ही ज़लदी में बना दो मर्द कि सखी को पाजी
फ़िर तो भैया बस काज़ी राज़ी ही राज़ी

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